My Digital Gao

Journey Of Life

“समय का खेल- : एक राजा से रंक बनने की सच्ची कहानी”

समय कब किसको कहाँ कैसे पहुंचा दे, कहा नहीं जा सकता। यह मेरी जीवन की सच्ची घटना हैं। जो मैं आप तक पहुंचना चाह रहा हूँ ।

समय चक्र आदमी को कब राजा कब रंक बना दे कहा नहीं जा सकता। मैंने मेरी ज़िंदगी में घटित हुई घटनाओं में से हुई एक घटना के बारे में ज़िक्र करना चाहता हूँ। समय जब बुरा चल रहा हो तब कर्म अच्छे हो या बुरे सभी को नीचे गिरा देता है। यह घटना जो मैंने देखी और घटित हुई उसका वर्णन करना चाहता हूँ। जिसमे एक राजा से आदमी रंक बन जाता है।

 यह घटना आज से लगभग 35-40 साल पुरानी होगी। जब मैं एक काम से अपने रिश्तेदार यहाँ गया हुआ था। यह बात उस ही दिन की बात है, जिस दिन मैं वहां पहुंचा था। शाम का समय था। लगभग कुछ 5 या 6 बज रहे होंगे। तेज आवाज़ के साथ एक बुज़ुर्ग आदमीं हाथ ठेले पर लाई (लाई जिसे परमाल या मुरमुरा भी कहते हैं।) और गुड़ की मुरमुरिया बेच रहा था। देखने से लग रहा था, कि उस व्यक्ति की स्थिति काफी दयनीय है। पेट पलने के लिए कुछ तो करना होगा, मेहनत का काम नहीं कर पा रहा होगा। इसलिए यह मुरमुरे बेचने का काम कर रहा होगा।

उसे देखते हुए मेरे दो दिन बीत गए, फिर मेरा मन नहीं माना मैं उनसे पूछ ही बैठा “दादा इतनी-सी मुरमुरियों में आपका गुज़ारा कैसे चलता होगा ?”  दादा ने मुस्कुराते हुए कहा बेटा इसे समय चक्र कहें या समय का फेर कि आज मैं यह काम कर रहा हूँ। कभी मैं भी बहुत बड़ा और रसूकदार आदमीं हुआ करता था। मेरे पास मोटर चाकर, बंगला यह सब कुछ मेरे पास था। लेकिन एक ऐसा काम हाथ में लिया। उस काम को करते-करते ऐसा डूबा कि आज तक नहीं उबार पाया हूँ। यह बात कह कर मुस्कुरा कर वे मुरमुरे बेचते हुए चले गये। इसके बाद उनकी बातों को नज़र अंदाज़ करते हुए, मैं अपने काम में व्यस्त हो गया।

अब वहां मेरा पांचवा दिन और आखरी दिन था। मैं दूसरे दिन के जाने की तैयारी कर रहा था। तभी फिर से वही मुरमुरिया बेचने वाले की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। वे बुज़ुर्ग व्यक्ति घर के बाहर आ कर मुझे आवाज़ दे रहे थे। मैं घर में बाहर आकर देखता हूँ, कि उनके हाथों में कुछ शासकीय कागजात व बैंक की पासबुक थी। जो वे मुझे दिखाने लाये थे। उस पासबुक मैं अपने हाथों में लेकर वहीँ चबूतरे पर आराम से बैठ गया। उन्होंने अपना हाथ ठेला एक तरफ लगाकर वह भी मेरे पास बैठ गए। उनकी पासबुक जब मैंने देखना शुरू की वैसे ही मेरी आँखें फटी की फटी रह गई। पासबुक में 90 लाख की एक एंट्री हुई थी। एक ही नहीं ऐसी ही कई बड़ी रकमों की एंट्री थी। अब मुझसे नहीं रहा गया। मैंने पूछा “दादा यह क्या है?” दादा ने ने कहा “मैंने एक डेम निर्माण का ठेका लिया था, उसका विवरण हैं। इसी के साथ दूसरे और ठेकों का भी विवरण हैं। डेम बना सफल हुआ आज भी हैं। ऐसा ही एक और डेम के निर्माण का ठेका मुझे मिला। दूसरे डेम को पूरा करते करते 90 लाख तो गये ही गाड़ी, बंगला सभी चले गये। यह समय चक्र है बाबू किसी को नहीं छोड़ता” मैं सुनकर हैरान था, सोचता रह गया ऐसा भी होता है।आज भी कई बार वह बुज़ुर्ग व्यक्ति की याद आती हैं।  उनके जीवन की बताई हुई सारी बातें मेरे ज़हन में घूमती हैं। समय कब किसको कहाँ कैसे पहुंचा दे, कहा नहीं जा सकता। यह मेरी जीवन की सच्ची घटना हैं। जो मैं आप तक पहुंचना चाह रहा था।

यह कहानी स्वर्गीय श्री राकेश श्रीवास्तव के द्वारा लिखी गयी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *